महंगाई! महंगाई! महंगाई!
पहले आटा, चावल, दाल, सब्जिया, फल यह सब तो महंगा हुआ ही साथ ही बिजली के दामो में बढ़त हो गई
और अब तो पानी के दामो को भी बढ़ाया जा रहा है अगले साल से
इन सब के दाम तो बढ़ा दिए सरकार ने लेकिन आमदनी का क्या वो कब बढ़ेगी?
ऐसे ही चलता रहा तो महंगाई के चलते बुख के साथ साथ प्यासा भी रहने की आदत डालनी पड़ेगी!
लेकिन सविधान के तहत तो हर भारतीय नागरिक को पूरे भारत में कही भी रहने और कारोबार करने का पूर्णतया अधिकार है, तो फिर महाराष्ट्र को सिर्फ़ मराठो का बोलना कहा तक उचित है?
मुंबई हो या महाराष्ट्र है तो भारत का ही, तो महाराष्ट्र को मराठो का कहना भारत के हर नागरिक को महाराष्ट्र से अलग कहना और मराठो को भारतीय से अलग कहना है, और न तो इसमे किसी भी मराठो की गलती है और न ही महाराष्ट्र में रहने वाले भारतीयों की, क्योकि वह भी अपने आप को भारतीय समझते है।
अब तक तो ट्रैक और पिल्लर वाले हादसे सुनने और देखने को आ रहे थे लेकिन अब तो मेट्रो रेल का ट्रैक पर से उतर जाना यह सब देखने को आ रहा है।
वैसे इसमे गलती है भी किसकी आज जहा मेट्रो के पिल्लर का निर्माण किया जा रहा है वही जाकर देखा जाए कि पहले वाले पिल्लर और अब के पिल्लर की बनावट दोनों में कितना अन्तर है
लो वेस्ट जीन्स पर बैन
पिछले दिनों इस बात से पूरे समाज में सनसनी फैल गई कि अब लड़के-लड़कियाँ लो वेस्ट जीन्स नहीं पहन सकेंगे। मुद्दआ ये है कि इस प्रकार के परिधानों को उत्तोजक बताते हुए इन पर बैन लगा दिया गया है। अब ये विषय विश्वविद्यालयों की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं से लेकर साहित्यिक पत्रिकाओं के वाद-विवाद व्यवसाय तक छाया रहेगा।
दरअसल हमारा जागरूक समाज इस निर्णय को इसलिए स्वीकार नहीं कर सकता क्योंकि यह हमारे मौलिक अधिकार 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का हनन है। इस संदर्भ में परम आदरणीया मल्लिका जी की एक सूक्ति उध्दृत की जा सकती है। जब उनके परिधानों को लेकर कुछ संकुचित मानसिकता वाले लोगों ने हंगामा खड़ा किया था तो मल्लिका जी ने यह उद्बोधन देकर मुआमला शांत किया था कि मेरे पास ख़ूबसूरत बदन है तो मैं क्यों न दिखाऊँ। तर्क में दम था। सो हंगामाजीवियों को साँप सूंघ गया और संपादकीय पृष्ठों से उठा विवाद पेज थ्री के इस बयान से समाप्त हो गया।
कदाचित् बुध्दिजीवियों ने यह सोचकर विवाद को आगे नहीं बढ़ाया कि यदि कल को मल्लिका जी ने उन्हें कम कपड़े पहनने की चुनौती दे डाली तो क्या होगा! सो अपनी इज्ज़त अपने हाथ....। ख़ैर कपड़ों की तरह विषय भी भटक गया था। सो वापस लो वेस्ट जीन्स पर आते हैं।
यह मुआमला केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का नहीं है अपितु हमारे सभ्य समाज की 'अनुभूति की स्वतंत्रता' का भी है। जब कुछ 'सुराग़' ही नहीं दिखाई देगा तो कल्पनाशील समाज पूरी तस्वीर की कल्पना कैसे करेगा। और जब तस्वीर की कल्पना ही नहीं होगी तो वह सुखद अनुभूति कैसे होगी जो..........!
इतना ही नहीं, ये निर्णय पुन: हमारे समाज की महिलाओं को उसी पुरुषवादी कठघरे में ला खड़ा करने का एक षडयंत्र है जिससे बाहर आने के लिए सैंकड़ों लोग महिला-मुक्ति का झंडा उठाए कमा रहे हैं। पहले पुरुषों ने धर्म के नाम पर महिलाओं को घर की चाहरदीवारी में क़ैद कर रखा था और अब पूरे कपड़ों में क़ैद करने के लिए समाज और सभ्यता की दुहाई दी जा रही है।
ये अन्याय नहीं चलेगा। और चूंकि क्रांति दबाने से और भड़कती है इसलिए यदि पुरुष यूँ ही मनमानी करते रहे और महिलाओं को पूरे कपड़े पहनाने को विवश किया गया तो महिलाएँ इसका और भी अधिक विरोध करेंगी और कोई कॉरपोरेट कंपनी अपनी सोशल रिस्पांसिबिलिटी निभाते हुए लो थाइज़ जीन्स लांच कर देगी। फिर देखते रह जाएंगे सारे पुरुष!
सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों को गंभीरता से लेते हुए इस निर्णय पर बैन लगाए। ज़रा सोचिए! एक ग़रीब आदमी जो अभी दो सप्ताह पहले लिवाइज़ की जीन्स ख़रीद कर लाया है, इस निर्णय के लागू होने से उसके दिल पर क्या बीतेगी। कहाँ से लाएगा नई जीन्स ख़रीदने के लिए वह पैसा। जिस दौर में लोगों के पास दाल-रोटी के लाले हैं, ऐसे में सरकार ने यदि इस प्रकार के निर्णयों पर रोक नहीं लगाई तो ग़रीबी कितनी बढ़ जाएगी।
वैसे भी जब गांधी जी अपने देशवासियों की चिंता में अपने पायजामे को धोती में बदल सकते हैं, तो गांधी जी के अनुयायी अपनी जीन्स को थोड़ा छोटा नहीं कर सकते। ये और बात है कि गांधी जी ने पाऊँचे काटे थे और हमने बैल्ट! पर मूल मुद्दआ तो कटौती का है। और कटौती हम कर रहे हैं। अब इस निर्णय पर पुनर्विचार होना चाहिए और इसको जीन्स से हटाकर टॉप पर लागू करना चाहिए कि जो लो वेस्ट टॉप पहनेगा उस पर ज़ुर्माना किया जाएगा। इससे हमारे टॉप भी ऊपर उठेंगे और 'संस्कृति' भी!
हसी की चोट
ऑस्ट्रेलिया में हुए भारतीये छात्रों पर नस्लीय हमले में अब तक ऑस्ट्रेलिया में कोई कदम नही उठाया गया।
न तो उनका विरोध करने दिया जाता है और न ही उन हमलो के आरोपियों पर कार्यवाही की गई।
ऐसे में तो भारत के छात्रों का ऑस्ट्रेलिया में रहना किसी खतरे से कम नही जहा उसे सुरक्षा और अधिकारों से वंचित रखा जाता है।
रोड रेज से गोलाबारी तक
घटना सफारी और फोर्ड फिएस्टा में टक्कर की है, घटना है तो साधारण लेकिन इसके परिणाम से कोई घायल हुआ तो किसी को अपनी जान से हाथ धोने पढ़े।
फोर्ड फिएस्टा में बैठे ३ लड़कों ने जिस तरह डंडों और गोलियां प्रयोग करके मारपीट करी है उनके इस बर्ताव से साफ़ जाहिर होता है कि या तो वह ड्रिंक या फिर अपनी अमीरी की शान में आकर यह सब किया है।
आख़िर उन लड़कों के पास पिस्टल कहाँ से आई, और क्या उन्हें क्या जरुरत पड़ी कि वह अपने पास पिस्टल रखे।
इन सब का जिम्मेदार और कोई नही बल्कि उनके ख़ुद माँ-बाप है जो अपने बच्चों को पैसे कि इतनी छूट दे देते है कि उनको ग़लत रास्ते में धकेल ने वाले वो ख़ुद होते है।
वरुण का नामांकन पत्र
लेकिन अब वो भाजपा में नामांकन के लिए पत्र भरेगे।
क्या देश की सरकार के लिए ऐसे उम्मीदवारों का खड़ा होना कहा तक सही है,
जो चुनाव से पहेले ही सांप्रदायिक भाषण दे रहे है वो जीतने के बाद क्या रंग दिखाएगे।
बीजेपी नेता नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कांग्रेस को १२५ साल की बुढ़िया कहा उस से तो साफ ज़ाहिर होता है की वह अपनी पार्टी के सदस्यों को या फिर अपने आप को जवान समझते है, बुढा नही।
उनके ब्यान से कांग्रेस अब बुढ़िया हो गई है, लेकिन मोदी जी क्या कही से जवान दिखते है?
क्या करे चुनाव के कारण पता नही नेता जी क्या-क्या बोल पढ़ते है उन्हें ख़ुद पता नही होता।
जूता और पत्रकारिता जगत
फ़्लैश-1 : अनेक संस्थाओं ने जरनैल के लिये आर्थिक पुरस्कार घोषित किये
फ़्लैश-2 : दैनिक जागरण ने कहा कि जरनैल के ख़िलाफ़ अनुशासानत्मक कार्रवाई की जाएगी
फ़्लैश-3 : चिदंबरम ने जरनैल को माफ़ किया
फ़्लैश-4 : टाइटलर और सज्जन कुमार का टिकट ख़तरे में
फ़्लैश-5 : आई बी एन सेवन समेत अनेक टी वी चैनलों ने जरनैल की हरक़त को शर्मनाक बताया
फ़्लैश-6 : जरनैल ने माफ़ी मांगी
फ़्लैश-7 : जरनैल के जूते की क़ीमल 5 लाख तक लगाई गई
सबक-1 : पत्रकारिता पाठ्यक्रमों में जूता फेंकने का प्रशिक्षण सम्मिलित किया जाना चाहिये।
सबक-2 : पत्रकारों को अपने संस्थान से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिये कि कोई मुसीबत पड़ने पर पत्रकार समाज उनके साथ खड़ा होगा।
सबक-3 : चुनाव के समय किसी भी नेता को कुछ कहा जाए तो माफ़ी बिना मांगे ही मिल जाएगी।
सबक-4 : राजस्थानी की एक कहावत है- सांडन की लड़ाई में झाड़न का नास होय!
सबक-5 : टी वी चैनलों के पत्रकार आईना नहीं देखते
सबक-6 : मरता क्या न करता!
पहेली-7 : क़लम बड़ी या जूता?
तकरार और आरोप
दोनों एक दुसरे के ऊपर आरोपो की बौछार लगा रहे है।
देखने में तो यह सब आम सा लग रहा है, लेकिन असल में तो यह राजनीति के मैदान में जीतने की एक बहस है।
कर्तव्य और घोषणापत्र
अब तक ऐसे ही कितने संकल्प लिए कभी मन्दिर तो कभी मस्जिद
कभी भारतीय नागरिको की जरुरत को समझ पाई
बीजेपी को तो बस मन्दिर-मस्जिद को बनवाने और तोड़ने का ही कम रह गया है।
छा गई नैनो
कुछ समय बाद तो सब्जी वालो का सपना साकार होने वाला है, जब वो भी कार में बैठकर अपना काम-धंधा करेगे।
वरुण गांधी बनाम जानवर
चलो ठीक ही हुआ, अब मेनका जी आपके संरक्षण के लिए अभियान चला सकती हैं!
भड़काऊ भाषण और वोट मांगते नेता
आज हर भारतीय नागरिक को जागरूक होने की जरुरत है, खासकर युवा पीढ़ी को। अपना मत न तो भड़काऊ भाषण और न ही घर पर आए भीख मांगते हुए नेता को दे।
एक गलत नेता के कारण सबका भविष्य तो बर्बाद होगा ही और साथ ही पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
आंतक का पक्ष
वरुण गांधी प्रकरण
मुझे मेनका गांधी की ग़लती बहुत साल रही थी
क्योंकि जब वरुण को बोलने की तमीज़ सिखानी थी
तब मेनका जी कुत्ते-बिल्ली पाल रही थी
अब उनके पाले हुए जंतु तो राजनीति कि गलियों में
मस्ती से डोल रहे हैं
औए बेचारे वरुण
संस्कारों के अभाव में
पशुता की भाषा
बोल रहे हैं
चुनावी असर
अब ऑनलाइन अपराधी भी कानून के शिकंजे में
बाल विकास में असफल भारत
- 14 साल से कम आयु के बच्चो से कम वेतन पर मजदूरी ली जाती है जिससे बच्चो का बचपन उनसे छिनता जा रहा है और वह अपनी शिक्षा से दूर होते जा रहे है,
- कम उम्र में बच्चो का विवाह किया जा रहा है और इस साल की यूनिसेफ की रिपोर्ट ने जाहिर किया है की भारत बाल विवाह का केंद्र है।
- बच्चो का शोषण किया जा रहा है, उनसे उनके अधिकार छीने जा रहे है।
- नवजात बच्चो खासकर लड़कियों को कई बार जन्म से पहले तो कई बार जन्म के बाद मौत के घाट उतार दिया जाता है।
इन कारणों के कारण भारत बाल विकास में पिछडा हुआ है। आर्थिक, सामाजिक, राजनातिक विकास के अलावा भारत को बाल विकास की ओर धयान देने की जरुरत है। बच्चो के विकास में ही इस देश की सफलता है क्योकि आने वाली पीढी की रक्षा करना देश का कर्तव्य और धर्म है।
भाषण के 100 रुपए
धारावाहिकों में बहती कुरीतियों की धारा
पाक के बड़ते सवाल
आग़ाज़
लापता जरदारी और मुशर्रफ़ की एंट्री
वही दूसरी तरफ़ पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ़ का कहना है कि अगर पेशकश की गई तो वह दुबारा राष्ट्रपति बनने के लिए तैयार है।
क्या इन दोनों बातो का कोई आपसी मेल हो सकता है अन्यथा यह सब तो जरदारी के मिलने के बाद ही पता चल सकता है.
रैगिंग का घातक परिणाम
गांधी की निशानियाँ
FRIEDA PINTO @ OSCARS
FRIEDA PINTO, who was an essential part of the movie, who helped in the making of it was present at the award function. Freida became a head-turner at award functions, Red carpet with her top-of-the-line dresses from Christian Lacroix haute couture, Oscar de la Renta, Zac Posen, Moschino and Marchesa.It is being remarked, that she looked awefull.But my question is, is her dress worth talking about at the kitty parties, association meets, get-to-gethers?what the lady has done for the country is simply commendable.but rewarding her with cheap ,down market , low standard comments on her dress is pathetic.It is required out of us to welcome the baggers with a warm welcome, and motivate the rest for similar such awards.Not with stupid remarks on those who performed.
चंदन की लकड़ी से कोयला बनाना....
लेकिन इतने सब के बाद भी हम पर्यटन उद्योग में बहुत पिछ्ड़े हुए हैं और सिंगापुर और स्विट्ज़रलैंड जैसे छोटे-छोटे मुल्क़ जिनके पास ऐतिहासिक धरोहरों के नाम पर कुछ भी नहीं है वे पर्यटन के दम पर अपना देश चला रहे हैं। किसी शायर ने कहा है ना-
तुम्हारे घर में दरवाज़ा है लेकिन
तुम्हें ख़तरे का अंदाज़ा नहीं है
हमें ख़तरे का अंदाज़ा है लेकिन
हमारे घर में दरवाज़ा नहीं है।
बापू की धरोहर की नीलामी
हमारी दिल्ली
दुनिया में फैलता आतंकवाद
पाकिस्तान: तालिबान के "साथ" या "विरुद्ध"
भ्रष्टाचार में डूबता भारत
We should
Whom we blame for such big unemployment.
Whom we blame for Naxelide in Orisa.
So the main thing is why we only blame?
Why we can't find reasons for blames?
ड्राइविंग टेस्ट या रिश्वतखोरी
CHANGING CONCEPT OF BREAKING NEWS
The concept of BREAKING NEWS is changing day-by- day for our media.Breaking news is a story that is simply of wide interest to viewers and has little impact otherwise.The term breaking news has come to replace the older use of news bulletin.Whether a live coverage is either a breaking news story,a developing news story or both,media use the term breaking news all the time.
Every news is a breaking news for media.Breaking News label is no longer helpful to viewers trying to determine the value of what's on the news so it is the primary duty of media to realise the importance and meaning of BREAKING NEWS.
ट्वेंटी ट्वेंटी चैम्पियन: भारत
नवजात की हत्या
VALENTINE WEEK
दिल्ली के स्कूलों में फीस की वृद्धि
SLUMDOG MILLIONAIRE -UNNECESSARY HYPE
This movie is over valued and is given excess importance.
International viewers loved this movie because it has so much of slum areas of India in it. Also they think that this is the real india. They consider india is a very poor country. Western film makers adopt the themes of poverty and unemployment in their movies in a very wrong manner so that at the international level when the movie is released the other people who don't know about our country get a wrong image of India, which is not affordable.
This movie has received Golden Global Awards and I think that is the total ignorance of our film industry.
मेट्रो स्टेशन बदलते जा रहे है
कितनी सुरक्षित दिल्ली मेट्रो
पार्क में कौन सा खेल ?
ager कोई आदमी अपनी family के साथ आया है तो उसे यह देख ker थोड़ा aajib sa लगेगा (ये क्या ker रहे है, ineh ऐसा नही करना चाहिए इससे baccho per बुरा prabhav padega)our agli bar आने से pahle थोड़ा sochega ,prantu ager vo उस समय aakela होता yaa अपनी bibi या किसी our के साथ होता तो vahe इस बात per jaara sa भी dhyan नही देता ऐसा क्यों ?ऐसा इसलिए kuonki कमी उनके ander है वे अपने को नही देखते blki doosare per ungali uthate है
kapel जब पार्क में जाते है तो अपने घर या अपने area से दूर किसी akant में मिलते है,जिससे उनको कोई pareshaan न करे ,per voye क्यों नही सोचते की वह area भी तो उनके देश का ही hissaa है jahan per बच्चे yaa बड़े busurg होंगे
आज हम सब का जो najariya है vo की जब कोई kadka या लड़की साथ चल रहे होते है तो हम सोचते है की ये जरूर kapel होंगे क्यों ?
रही बात kanoon की तो, ajkal hamre देश में एक word बहुत प्रचलित है("kanoon तो todane के लिए होते है ") per हमारे IPC की धारा 249k tehet pablic place में ashlile harkate करने per pratibanth है न की साथ baidhne में ,साथ चलने में या साथ बात करने मेंour ladke - ladikiya को भी अपनी aabru का khya रखना chahiy की कोई unper ungali न उठा सके
धर्म के नाम पर राजनीति का खेल
media' role
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