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जूता और पत्रकारिता जगत

एक ख़बर- दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने पी.चिदंबरम पर जूता
फ़्लैश-1 : अनेक संस्थाओं ने जरनैल के लिये आर्थिक पुरस्कार घोषित किये
फ़्लैश-2 : दैनिक जागरण ने कहा कि जरनैल के ख़िलाफ़ अनुशासानत्मक कार्रवाई की जाएगी
फ़्लैश-3 : चिदंबरम ने जरनैल को माफ़ किया
फ़्लैश-4 : टाइटलर और सज्जन कुमार का टिकट ख़तरे में
फ़्लैश-5 : आई बी एन सेवन समेत अनेक टी वी चैनलों ने जरनैल की हरक़त को शर्मनाक बताया
फ़्लैश-6 : जरनैल ने माफ़ी मांगी
फ़्लैश-7 : जरनैल के जूते की क़ीमल 5 लाख तक लगाई गई

सबक-1 : पत्रकारिता पाठ्यक्रमों में जूता फेंकने का प्रशिक्षण सम्मिलित किया जाना चाहिये।
सबक-2 : पत्रकारों को अपने संस्थान से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिये कि कोई मुसीबत पड़ने पर पत्रकार समाज उनके साथ खड़ा होगा।
सबक-3 : चुनाव के समय किसी भी नेता को कुछ कहा जाए तो माफ़ी बिना मांगे ही मिल जाएगी।
सबक-4 : राजस्थानी की एक कहावत है- सांडन की लड़ाई में झाड़न का नास होय!
सबक-5 : टी वी चैनलों के पत्रकार आईना नहीं देखते
सबक-6 : मरता क्या न करता!
पहेली-7 : क़लम बड़ी या जूता?

1 comment:

एस. बी. सिंह said...

लगता है अब पत्रकारों के पास लिखने को कुछ नहीं रहा या फ़िर उन्हें कलम की ताकत प् भरोसा नहीं रहा जो जूता फेंकने पर उतर आए।

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