कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है कि ये देश 'कुरीतियों का देश' है। ये सच है कि हमारे समाज में आज भी अनेक कुरीतियाँ मौजूद हैं, लेकिन क्या उनका इस प्रकार भौंडा प्रदर्शन देश की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता।
आर्थिक, सामरिक, सामाजिक और राजनैतिक संकटों के इस भयावह दौर में क्या हमारा कर्तव्य यह नहीं है कि हम अपने घर की समस्याओं का ढिंढोरा पीटने की बजाय उनको हल करने का प्रयास करें। यहाँ यह बात विशेष रूप से ध्यातव्य है कि इन धारावाहिकों के निर्माताओं का इन कुरीतियों से इतना ही सरोकार है कि इन कुरीतियों को बेचकर पैसा कमाना इन्हें आसान जान पड़ता है।
No comments:
Post a Comment